फोटो क्रेडिटः उरमूल
“जब पिछले साल अचानक से तालाबंदी हुई थी तब हमने तत्काल बैठक की, स्थिति का आंकलन किया और टीम बनाई। मास्क बनाए, राशन वितरण किया, पशुओं का टीकाकरण किया, टिकाऊ कृषि और सब्जी बाड़ी पर जोर दिया। जन जागरूकता कार्यक्रम चलाया।” यह उरमूल सीमांत समिति की शिल्प इकाई की प्रेरणा अग्रवाल थीं।
पश्चिमी राजस्थान का यह इलाका थार का मरुस्थल कहलाता है। मरुस्थल यानी शुष्क क्षेत्र। थार के मरुस्थल में दूर-दूर तक रेत के मैदान हैं। रेत के पहाड़ हैं, जिन्हें यहां धौरे कहा जाता है। छोटी कंटीली झाड़ियां हैं। विरल पेड़-पौधे हैं। यहां कम पानी और बहुत गरमी होती है। यहां की मुख्य आजीविका कृषि और पशुपालन है।
इस इलाके में उरमूल सीमांत समिति करीब चार दशक से कार्यरत है। उरमूल यानी उत्तरी राजस्थान मिल्क यूनियन लिमिटेड। 90 के दशक में उरमूल का विकेन्द्रीकरण हुआ। बाद में उरमूल ट्रस्ट बना। उरमूल सीमांत समिति नेटवर्क संस्था है। इसका केन्द्र बज्जू गांव ( बीकानेर जिला) में स्थित है। इस संस्था ने स्वास्थ्य, शिक्षा, कशीदाकारी, कढ़ाई, बुनाई और स्थाई आजीविका, टिकाऊ कृषि, किचिन गार्डन जैसे कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं।
प्रेरणा अग्रवाल बताती हैं कि “जब पिछले साल तालाबंदी हुई थी, तब होली के बाद का समय था। गांव के लोग खेती-किसानी के काम में लगे हुए थे। हमने तत्काल स्थिति की गंभीरता को समझा और ग्रामीण कार्यकर्ताओं की मदद के लिए टीम बनाई और पहल शुरू की।”
वे आगे बताती हैं कि “सबसे पहले हमने महिलाओँ को मास्क बनाने का प्रशिक्षण दिया। बीकानेर, गंगानगर और हनुमानगढ़ जिले के गांवों में 40 केन्द्र बनाए। बुनकरों समूहों से सूत बनवाया, और उस कपड़े से सिलाई प्रशिक्षण केन्द्रों में मास्क तैयार करवाए। मास्क तैयार करने के लिए महिलाओं की पुरानी साड़ियों का इस्तेमाल किया। नापासर, लूनकरणसर के बुनकरों से कपड़ा खरीदा। कपड़े की डोरियां बनवाईं। इस तरह हमने ढाई-तीन लाख मास्क बनाए। उनमें कढ़ाई व कशीदाकारी भी करवाई। इससे हमारे शिल्प इकाई के कर्मचारियों की आजीविका चली। संस्था से करीब 4-5 हजार कारीगर जुड़े हैं, उन्हें लगातार रोजगार मिला, और मास्क से कोविड-19 से बचाव हुआ।”
प्रेरणा अग्रवाल बताती हैं कि “हमने बहुत जरूरतमंद लोगों को गांव- गांव में सूखा राशन वितरित किया,जिसमें 6 किलो आटा, 1 किलो शक्कर, 1 किलो नमक, 1 किलो दाल, 1 लीटर सरसों तेल दिया। इसके साथ, धनिया पाउडर, मिर्ची, हल्दी, चाय पत्ती, साबुन और कपड़े का झोला दिया। यह सभी सामान महिला समूहों से लिए, जो कोविड-19 में आर्थिक कठिनाई से जूझ रहे थे। यह महिला समूह करीब 2000 महिलाओं को मदद करते हैं।”
अन्य राहत सामग्री व स्वच्छता किट वितरित कीं। इसमें हमने रोजमर्रा काम आनेवाली चीजें शामिल कीं, क्योंकि उस समय बाजार बंद थे, और आवाजाही पर रोक थी, लोगों के हाथ में नकद राशि भी नहीं थी। स्वच्छता किट में शैम्पू, साबुन, टूथब्रश, टूथपेस्ट, मास्क, बिंदी, कंघी, तेल, चप्पल और बच्चों के कपड़े इत्यादि शामिल थे।
इसके अलावा, इस प्रक्रिया में महिला स्वयं सहायता समूह भी जुड़े। लूनकरणसर के उजाला महिला समूह से मसाले खरीदे। बज्जू के किसान क्लब से गेहूं और आटा खरीदा। गठियाला में अनाज बैंक बनाया। इस सभी राशन सामग्री को जरूरतमंदों में वितरण किया।
कोविड-19 से बचाव के उपायों का प्रचार-प्रसार किया और जागरूकता कार्यक्रम भी चलाया गया। गांव- गांव में टीमें भेजी गईँ। मास्क लगाना, शारीरिक दूरी बनाना, कोविड-19 के लक्षणों के बारे में बताना, बुखार नापना और उसे नोट करना, अस्पताल व डाक्टरों से सलाह लेना, इत्यादि की जानकारी दी गई। साबुन से बार-बार हाथ धोने और सेनेटाइजर का इस्तेमाल करने और साफ सफाई व स्वच्छता रखने की सीख दी गई। किशोरी लड़कियों को सेनेटरी पेड का भी वितरण किया गया।
प्रेरणा अग्रवाल बताती हैं कि यह काम कठिन था, पर बहुत जरूरी था क्योंकि मरुस्थल के अधिकांश गांवों के लोग उनके खेतों यानी ढाणियों में रहते हैं, जो कई किलोमीटर दूर-दूर हैं, वहां तक स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच नहीं है। विकासखंड स्तर पर ही स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हैं। ऐसे में उरमूल सीमांत समिति के काम से लोगों को बड़ी मदद मिली।
श्रीगंगानगर गांव की लक्ष्मी रानी बताती हैं कि उरमूल संस्था की पहल से लोगों को काफी मदद हुई। फोन, वाट्सएप, आनलाइन मीटिग के जरिए हम गांव-गांव की महिलाओं से जुड़े और उनकी सहायता कीं। इस मंच पर महिलाएं अपनी समस्याएं बताती थीं। चाहे पशुओं के चारे-पानी की समस्याए हों या लोगों से स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या हों, या फिर राशन सामग्री की कमी हो, सभी पर बात होती थी। इस तरह जो भी मदद संभव होती, वह तत्काल की जाती।
उरमूल संस्था शिल्प इकाई से जुड़ी लक्ष्मी रानी बताती हैं कि “ उरमूल संस्था की पहल का अच्छा प्रभाव पड़ा। जैसे दंतौर गांव की सोना जी और वीरपाल जी, जो मकान निर्माण के काम में मजदूरी करती थीं, उनका तालाबंदी के कारण काम बंद हो गया था। उनको भोजन के लिए राशन सामग्री भी खरीदना मुश्किल था, हमने उन्हें दो बार राशन सामग्री दी। साथ ही उन्हें शिल्प इकाई के माध्यम से दुपट्टे रंगाई का काम दिया गया, जिससे उनके हाथ में कुछ पैसा आए। शिल्प इकाई से जुड़ी महिलाओं ने अपने स्तर पर मास्क बनाकर बेचे। रूनिया बड़ावास गांव की गोगा जी और चाड़ासर गांव की रचना जी ने बड़े पैमाने पर मास्क बनाए और बेच कर कुछ कमाई की। गडियाला की नसीम बानो ने सूती दुपट्टों को रंगाई कर बेचा और कुछ पैसे कमाए।”
रूनिया बड़ावास की गोगा जी ने बताया उरमूल संस्था ने कठिन समय में साथ दिया। जरूरतमंदों को राशन दिया, महिलाओं को सिलाई,कढाई व रंगाई का प्रशिक्षण दिया, जिससे महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने में मदद मिली। दंतौर गांव की एकता ग्राम संगठन की अध्यक्ष कृष्णा जी ने बताया महामारी में मजदूरों को सबसे ज्यादा दिक्कत आई। महिला समूह भी बचत जमा नहीं कर पा रहे थे, किस्त नहीं दे पा रहे थे, क्योंकि उनके पास काम नहीं हैं। ऐसे समय में उरमूल संस्था ने मजदूरों की मदद की, राशन दिया। महिलाओं को आनलाइन हस्तशिल्प का प्रशिक्षण दिया। डेलीतलाई की तारीबाई बताती हैं कि जब पिछले साल महामारी आई थी तो हम पर अचानक मुसीबत आन पड़ी। लेकिन धीरे-धीरे अब उससे निकल रहे हैं। इस साल बारिश भी अच्छी हो रही है। उरमूल संस्था का कशीदाकारी का काम अब मिलने लगा है। उन्होंने कोविड से बचाव के लिए दोनों टीके लगवा लिए हैं।
उरमूल के रामप्रसाद हर्ष ने बताया कि कोविड-19 से बचाव के लिए ग्रामीणों ने काढा पिया। पौष्टिक भोजन किया। बाजरे की रोटी, दही, छाछ, राबड़ी और घी को भोजन की थाली में शामिल किया, सहजन पाउडर खाने में डालने के लिए बांटा गया, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने में मदद मिली। पंचायत स्तर पर चंदा एकत्र किया। भीकमपुर, बज्जू, घड़ियाल, लोखड़ा पंचायत में चंदे की बड़ी राशि एकत्र हुई, जिससे आक्सोमीटर, भाप ( स्टीम) की व्यवस्था,थर्मामीटर की व्यवस्था की गई। एक दूसरे की मदद की, जरूरतमंदों को अऩाज दिया।
कोविड-19 के दौरान करीब 700 ऊंट मर गए। जो पशुपालक ऊंट लेकर पंजाब, हरियाणा गए थे, वे बीच में ही लौट आए। इसलिए पशुओं को बचाना बहुत जरूरी था, क्योंकि मरुस्थल के इस इलाके में पशुपालन आजीविका का बड़ा स्रोत है। पशुओं का टीकाकरण अभियान चलाया गया।
डिजर्ट रिसोर्स सेंटर के अंशुल ओझा बताते हैं कि “हमने न केवल तत्कालीन राहत का काम किया बल्कि दीर्घकालीन पहल जारी रखी है। इसमें चरागाह विकास कार्यक्रम, शिल्प इकाई, टिकाऊ कृषि, किचिन गार्डन व दूध डेयरी की गतिविधियां जारी रखी है।”
वे बताते हैं कि “ घुमंतू चरवाहे किसानों परिवारों पर उनके पशुओं के लिए चारे-पानी के लिए निर्भर रहते हैं, पर कोविड फैलने के डर से उनके खेतों में पशुओं को चराने की अनुमति नहीं दी। लेकिन जब कोविड की महामारी नहीं थी तब वे इसकी अनुमति दे देते थे और बदले में इनके खेतों में छोड़े गोबर से प्राकृतिक जैव खाद मिल जाती थी।”
कोविड-19 की दूसरी लहर में भी पशुओं के लिए चारे-पानी की समस्या बढ़ रही है। इंदिरा गांधी नहर मरम्मत के लिए 70 दिनों के लिए ( 21 मार्च से) से बंद कर दी गई है। जबकि इंदिरा गांधी नहर के बाजू से गुजरने वाले रास्तों पर हरियाली होती है, पानी पीने के लिए मिल जाता है। लेकिन उसके बंद होने से पशुओं की परेशानी बढ़ गई है। इस समस्या को देखते हुए उरमूल ने पहले से ही चरागाह विकास कार्यक्रम चलाया है जिससे पशुओं को स्थानीय स्तर पर चारा मिल सके।
संस्था ने बीकानेर जिले के लूनकरणसर विकासखंड के चार गांव भोपालाराम ढाणी, केलान, कालू और राजासर भाटीयान में चारा विकसित किया है। चारों गांवों की कुल 98 हेक्टेयर भूमि है, जिस पर चारा और चारे के पौधे जैसे मोरिंगा ( सहजन), सेंवण घास, दामण घास, खेजड़ी आदि लगाए गए हैं।
टिकाऊ कृषि कार्यक्रम के तहत् जैविक खेती, केंचुआ खाद, जैव कीटनाशक, राठी नस्ल की दुधारू गायों की देखभाल, पशु आहार, चरागाह विकास, बागवानी ( किचिन गार्डन) आदि के प्रशिक्षण दिए जाते हैं। इसके अलावा, उरमूल परिसर में कृषि डेमो फार्म भी बनाया गया है, जिसमें केंचुआ खाद, जैव कीटनाशक, फलदार पेड़, बागवानी ( किचिन गार्डन), गोबर गैस प्लांट, ड्राई सोलर यूनिट, पशु आहार, चरागाह आदि हैं, जिसे देखकर और सीखकर किसान खुद यह कर सकें। इससे उनकी खेती की लागत भी कम होगी और जमीन की उर्वरा शक्ति भी बनी रहेगी। इस पहल से प्रत्यक्ष तौर पर लगभग 3000 किसान जुड़े हैं, जबकि अप्रत्यक्ष तौर पर जिले के कई किसान लाभांवित हो रहे हैं। यह स्थाई आजीविका की ओर पहल मानी जा सकती है।
इस पूरे काम में उरमूल रूरल हेल्थ रिसर्च और डेवलपमेंट ट्रस्ट और शिल्प इकाई ने जरूरी मदद उपलब्ध कराई। श्वेताम्बरा, लक्ष्मीरानी, संतोष टाक का योगदान रहा। मास्क का वितरण करने में जिला परिषद और ग्राम पंचायत और समुदाय के प्रतिनिधियों ने मदद की। इसके अलावा,कई संगठन व संस्थाओं के साथ मिलकर काम किया, इसमें स्वयं सहायता समूह, किसान क्लब, स्थानीय दस्तकार ने काफी सहयोग किया।
कुल मिलाकर, इस थार के मरुस्थल में तत्कालीन व दीर्घकालीन स्तर पर काम किया गया, जिससे समुदाय आत्मनिर्भर बन सके और महामारी का मुकाबला करने में सक्षम बन सके। तत्कालीन राहत में मास्क बनाना, राशन सामग्री, स्वच्छता किट इत्यादि का वितरण किया गया, जागरूकता कार्यक्रम चलाया गया। महिलाओं को सिलाई-कढाई का प्रशिक्षण दिया, उन्हें आयवर्धन के कामों से जोड़ा। संस्था के पूर्व संचालित कार्यक्रम जैसे शिल्प इकाई के हुनर से प्रशिक्षित महिलाओं को आजीविका बनाए रखने में मदद मिली। पारंपरिक चिकित्सा के नुस्खों को अपनाया गया। समुदाय, पंचायत व स्वयं सहायता समूहों व किसान समूहों को जोड़ा गया। पशुओं का टीकाकरण किया गया। और दीर्घकालीन स्तर पर टिकाऊ कृषि कार्यक्रम, जैविक खेती, बागवानी, चरागाह विकास कार्यक्रम जारी रखे गए, जिससे समुदायों को आत्मनिर्भर बनने में मदद मिल सके। यह पूरी पहल उपयोगी व अनुकरणीय है।
विकल्प संगम के लिये लिखा गया विशेष लेख (SPECIALLY WRITTEN FOR VIKALP SANGAM)